Sunday, July 4, 2010

शाकाहार का प्रोपैगंडा

क्या मांसाहार पाप है,,,,?,,, उत्तर हाँ में है ,,,,कारण,,,?,,,, यह है कि यह जीव हत्या के बिना संभव नहीं ,,,,परन्तु क्या जीव हत्या के बिना शुद्ध शाकाहारी बन कर रहा जा सकता है ,,,?,,,अगर वह संभव नहीं तो यह भी संभव नहीं ,,कारण यह है कि कोई सब्जी ऐसी नहीं जो बिना जीव हत्या के उचित मात्र में मनुष्य को प्राप्त हो जाए ,,,अब देखये न ,एक टमाटर को प्राप्त करने के लिए कम से कम आठ परकार की सुंडियां और कीड़े मकोड़ों को मारना पड़ता है ,,ऐसे ही गोभी के लिए चौबीस परकार के ,आम के लिए नौ परकार के ,खीरा ,ककड़ी ,लौकी ,आदि के लिए सात परकार के जीवों की हत्या करनी ही होती है ,,और अगर ऐसा न किया जाए ,,तो फिर यह वस्तुएं मनुष्य को न मिल कर कीड़े माकोंडों की धरोहर बनकर ही रह जाती हें ,,,प्रश्न यह हे कि अपने पेट की आग को बुझाने के लिए किसी की जन क्यों ली जाए ,,उत्तर यह है की यह पर्कारती का नियम है ,और हम उस नियम को बदल नहीं सकते ,,जेसे और बहुत से नियमों से हमें समझोता करना पड़ता है ऐसे ही यहाँ भी करना ही होगा ,,,,,, अगला प्रश्न यह है कि जीव हत्या करने में उस जीव को पीड़ा होती है जो किसी भी परकार उचित नहीं ठहराया जासकता ,,परन्तु ,,मीरा उत्तर होगा कि पीड़ा,,,,,पीड़ा,,,, सब बराबर ,,जब आप टमाटर ,गोभी ,लोकी ,आदि प्राप्त करने के लिए कीड़ों ,सुंडियों ,को पीड़ा देने में संकोच नहीं करते तो ,,???,,,,अंतर यही तो है कि वहां तो छोटी पीड़ा है जो आप को आभास नहीं कराती ,,और बकरा ,सूअर आदि चीखता चिंघाड़ता है तो ,तब ,तो आप को आभास हो ही जा ता है ,,अरे भाई छोटे की छोटी पीड़ा ,क्यों कि ,मुर्गी को तकवे का दाग ही काफी होता है ,,और हाँ पीड़ा की बात भी सुनये,,, में ,,दावे से यह बात कह सकता हूँ कि जीव हत्या करने में उसे पीड़ा बिलकुल नहीं होती ,,,वह कैसे ,,चलये आप को भी बताते हैं ,जिसे आप भी अवश्य मानेंगें ,, इस को समझने के लिए आप कुछ बातें ध्यान में रखये (१) पीड़ा का सम्बन्ध मस्तिष्क से है (२) किसी भी जीव का शरीर पर्क्र्ती ने जान बूझ कर ऐसा बनाया है कि ,उस पर छोरा चाकू आदि की मार पड़े तो मस्तिष्क को आभास होने में पांच सैकेंड अवश्य चाहिए ,,,(३) और जानवर के गले की मुख्य नाड़ी को काटने में केवल तीन सैकेंड ही लगते हें ,,तो जब तीन सैकेंड में शरीर का मस्तिष्क से नाता ही टूट गया तो ,उसे आभास ही क्या हुआ ?,,,रही बात यह कि हम उसके शरीर का फडफडाना देखते हें ,तो उसका कारण पीड़ा नहीं ,अपितु शरीर से खून का रिसाव हे ,,,
क्या हरे पूर्वज भी मांस का भोज करते थे ,,? ,,,अवश्य ,,अवश्य ,,,अब देखये न, वाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड ५३|२२ में पृष्टं क्या कह रहे हैं ,,
मर्ग का मांस ला कर हम अपनी कुटी में हवन करेंगे , क्योकि दीर्घायु चाहने वालों को ऐसा करना आवश्यक है ,हे लक्ष्मण शीघ्र ही मर्ग मार कर लाओ, ,,
वाल्मीकि रामायण अवोध्य कांड १६| १-२ में हे ,,रामचन्द्र जी पर्वत कि छोटी पर बैठे और सीता को मांस से प्रसन्न करते हुए कहने लगे कि यह भुत पवित्र हे ,ओर यह अत्यंत स्वादिष्ट हे ,यह आग में भुना हुआ हे ,
यजुर्वेद १३ \५१ में भी सही ,और हिरणों को मरने कि आज्ञा दी गयी हे ,,,
तात्पर्य यह है कि हमारे पूर्वज मांस खाते थे ,,और आज भी हम हिन्दू ही अधिक मांस खाते हैं ,,कसी भी नगर नें नज़र दौडाएँ अधिक मासहारी होटेल हमारे हें ,,, फिर भी हर करते हें ,,,शाकाहार का प्रोपेगेंडा ,,,

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